What is Electoral bonds scam: इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है, जिस पर हो रहा है इतना विवाद ?
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है:-
राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए 2018 में भारत में चुनावी बांड पेश किए गए थे। वे व्यक्तियों और निगमों को भारतीय स्टेट बैंक की अधिसूचित शाखाओं के माध्यम से गुमनाम रूप से राजनीतिक दलों को दान देने की अनुमति देते हैं। ये बांड विभिन्न मूल्यवर्ग में आते हैं, ₹1,000 से ₹1 करोड़ या अधिक तक। पारंपरिक तरीकों के विपरीत, गुमनामी सुविधा दाताओं की पहचान को छुपाती है। समर्थकों का तर्क है कि यह दानदाताओं को प्रतिशोध से बचाता है, जबकि आलोचकों का दावा है कि यह पारदर्शिता को कमजोर करता है। राजनीतिक दल एक निश्चित अवधि के भीतर निर्दिष्ट खातों में बांड भुना सकते हैं। विवादों के बावजूद, चुनावी बांड राजनीतिक फंडिंग के लिए एक कानूनी तंत्र बने हुए हैं, जो इस बात पर असर डालते हैं कि भारत में राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता कैसे मिलती है।
इलेक्टोरल बॉन्ड विवाद:-
यह केस लगभग 08 वर्षों से चला आ रहा है। अब जाकर इस पर कार्यवाही सख्त हुई है। इसकी सुनवाई से पहले भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी जी ने इस योजना का समर्थन किया था और कहा कि इससे राजनीतिक पार्टियों के लिए जाने वाले चंदो में पारदर्शिता आयेगी।
भारत के वर्तमान मुख्यन्यायधीश डी. वाई. चंद्रचूड के अध्यक्षता में 05 न्यायधीशों की पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में सुनवाई कर रही है। नीचे दिये गये डाटा के अनुसार पार्टियों को बॉन्ड दिये गये। माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा इसकी पूर्ण रिपोर्ट बारे कहा गया था। परन्तु एस बी आई की तरफ से 03 महीने का समय मांगा गया था।
अब माननीय न्यायाधीश द्वारा इसकी रिपोर्ट 11 मार्च तक जमा कराने को कहा गया था। अंदाजा लगाया जा रहा है कि SBI द्वारा इसकी पूर्ण रिपोर्ट पेश कर दी है। वहीं SBI द्वारा इसमें 03 माह का समय मांगा जा रहा था। अब सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद रिपोर्ट 01 ही दिन में चुनाव आयोग को पेश कर दी।
विपक्षी पार्टियों द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि साहब ने सुप्रीम कोर्ट बार असोशीएशन के अध्यक्ष के जरिये राष्ट्रपति मुर्मु को पत्र लिखवाया हैं की #ElectoralBondsCase पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू ना किया जाए और Electoral Bond का काला चिट्ठा जनता के सामने न आने का भरसक प्रयास किया जा रहा!